मिट्टी का दीया
जगमग उजास है,
दीया सुप्त उदास है,
कोई तो खरीद कर,
द्युति बिखराइए।
कुटते हैं पिसते हैं,
दीप रूप धरते हैं,
इंतज़ार बाती का है,
मत तरसाइए।
अस्तित्व निखारने में ,
अंधियारा मिटाने में,
दीया-बाती जोड़कर,
दिवाली मनाइए।
रामजी के स्वागत में,
चौदह वर्ष आगत में,
तमस हराया था "श्री",
भूल मत जाइए।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Mohammed urooj khan
25-Oct-2023 12:21 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Punam verma
24-Oct-2023 08:13 AM
Nice👍
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Abhinav ji
24-Oct-2023 07:33 AM
Very nice 👍
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